बौद्ध धर्म ने भारत समेत विश्व के अनेक देशों को गहरे अर्थो में प्रभावित किया है, पर समय के साथ इसने अपने कई रूप बदले बदलती सामजिक आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप बौद्ध धर्मं ने अपने स्वरुप को लगातार बदला है, - जिस समय चीनी यात्री फाहियान भारत आया था, तब से ले कर अब तक गंगा - यमुना में काफी पानी बढ़ चुका है , इन दोनों नदियों के पाट और घाट में भी परिवर्तन हो गया है , पानी ने जंहा शहरो के रुख को बदला वही उनमे नई सभ्यता और संस्कृति को भी विकासित किया उनके भीतर उर्जा दी, वैसे भारत में उदभव हुए , बौद्ध धर्मं ने न केवल शहरो की परी पार्टियों को बदला बल्कि विभिन देशो में रहने वाले लोंगो की भावनाओ को उद्वेलित कर इस समता वादी धर्म को अपनाने हेतु प्रेरित किया , इतिहास हमें बताता है की किस तरह चीन के लोंगो में बौद्ध धर्मं के मौलिक और सिद्धांतो के बारे में जिज्ञासा बढ़ने लगी थी .
फाहियान पहला चीनी बौद्ध भिछु था जो भारत आया . मध्य चीन से भारत तक अपनी यात्रा उसने पैदल ही की थी , जिस समय वह यंहा आया , उन दिनों चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य ( लगभग ३७५ - ४१८ इ० ) का राज्य था , चीन में उसका जीवन काल दो राज्यवंशों-सीन वंशो ( ३१७ - ४१९ इ० ) तथा सुई वंश ( ४२० - ४७८ इ० ) से जुड़ा हुआ था , फाहियान के भारत आगमन से पहले मौर्या सम्राट अशोक - ( लगभग २७३ - २३२ इ० पू० ) ने भारत और भारत के बाहर बौद्ध धरम का प्रसार करवाया था |
पर बाद की स्थिति का अब हम विश्लेसन करते है, तो बौद्ध धर्मं के प्रचार - प्रसार के मामले में पहले से विपरीत परिस्थितियां पाते है इस की विभिन्न देशों को बौद्ध धर्मं की दीखा ले कर धरम गुरु भारत खोज में लगा था जबकि अन्य देश विकसित स्थिति में दौड़ने लगे थे |
इस बात में कोई संदेह की भारत के बाहर के देशों ने बौद्ध धर्मं को पुनर जीवित करने के लिए बहुत प्रयास किये , पर वे विभिन्नता भी साथ लाये , खान - पान, पहनावा संस्कृति परंपरा तथा पूजा - पाठ के स्वभाव और विधि में उनका एक अलग दर्शन था, जब हम ये कहते हुए नहीं थकते की बौद्ध धर्म ने विश्व के देशों को बहुत कुछ दिया , तब हम यह अक्सर यह भूल जाते है की भारतीय संस्कृति को विदेशी संस्कृति तथा सभ्यता ने बहुत अधिक प्रभावित किया था , उदाहरण के लिए भारतीय बौद्ध धर्म को चीन के तांत्रिको ने जंहा प्रभावित किया वंही दलाई लामा ने बुद्ध अनुयाई को पंडित - पुजारी बनाने में मदद की , बुद्ध विहारों को मंदिरों का रूप दे दिया गया , धूप बत्ती से अगर बत्ती जलाने के साथ - साथ विहारों में सुबह - शाम प्रार्थनाये होने लगी, आम आदमी के साथ ख़ास तबका भी भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने अपनी पीड़ा बयान करते हुए, सुख और सुविधा के लिए मनौती माग ने लगा इस तरह बुद्ध भक्तो ने बुद्ध को दिव्यता को चमत्कार से जोड़कर अपने आराधना पुरुष को ईश्वर बना दिया, इसे बौद्ध आन्दोलन की परिडित कहे या धर्म की यात्रा में सनातनी शैली में ठहराव ?
फाहियान पहला चीनी बौद्ध भिछु था जो भारत आया . मध्य चीन से भारत तक अपनी यात्रा उसने पैदल ही की थी , जिस समय वह यंहा आया , उन दिनों चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य ( लगभग ३७५ - ४१८ इ० ) का राज्य था , चीन में उसका जीवन काल दो राज्यवंशों-सीन वंशो ( ३१७ - ४१९ इ० ) तथा सुई वंश ( ४२० - ४७८ इ० ) से जुड़ा हुआ था , फाहियान के भारत आगमन से पहले मौर्या सम्राट अशोक - ( लगभग २७३ - २३२ इ० पू० ) ने भारत और भारत के बाहर बौद्ध धरम का प्रसार करवाया था |
पर बाद की स्थिति का अब हम विश्लेसन करते है, तो बौद्ध धर्मं के प्रचार - प्रसार के मामले में पहले से विपरीत परिस्थितियां पाते है इस की विभिन्न देशों को बौद्ध धर्मं की दीखा ले कर धरम गुरु भारत खोज में लगा था जबकि अन्य देश विकसित स्थिति में दौड़ने लगे थे |
इस बात में कोई संदेह की भारत के बाहर के देशों ने बौद्ध धर्मं को पुनर जीवित करने के लिए बहुत प्रयास किये , पर वे विभिन्नता भी साथ लाये , खान - पान, पहनावा संस्कृति परंपरा तथा पूजा - पाठ के स्वभाव और विधि में उनका एक अलग दर्शन था, जब हम ये कहते हुए नहीं थकते की बौद्ध धर्म ने विश्व के देशों को बहुत कुछ दिया , तब हम यह अक्सर यह भूल जाते है की भारतीय संस्कृति को विदेशी संस्कृति तथा सभ्यता ने बहुत अधिक प्रभावित किया था , उदाहरण के लिए भारतीय बौद्ध धर्म को चीन के तांत्रिको ने जंहा प्रभावित किया वंही दलाई लामा ने बुद्ध अनुयाई को पंडित - पुजारी बनाने में मदद की , बुद्ध विहारों को मंदिरों का रूप दे दिया गया , धूप बत्ती से अगर बत्ती जलाने के साथ - साथ विहारों में सुबह - शाम प्रार्थनाये होने लगी, आम आदमी के साथ ख़ास तबका भी भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने अपनी पीड़ा बयान करते हुए, सुख और सुविधा के लिए मनौती माग ने लगा इस तरह बुद्ध भक्तो ने बुद्ध को दिव्यता को चमत्कार से जोड़कर अपने आराधना पुरुष को ईश्वर बना दिया, इसे बौद्ध आन्दोलन की परिडित कहे या धर्म की यात्रा में सनातनी शैली में ठहराव ?
बात यंही पर ख़त्म नहीं होती , अपने ही देश के विभिन्न राज्यों में बौद्ध धर्मं के भीतर विसमता की बेल इतनी लम्बी हो गई कि अब उसका न सिर मिलता है और न अंत , इन राजाओ के बौद्ध भिख्नो ने न खत्म होने वाली परम्परा को विकसित होने में मदद ही की , विशेष रूप में उत्तरी पूर्वी भारत के राज्यों आसाम - मेघालय - मिजोरम तथा त्रिपुरा आदि में परम्परागत बुद्धिस्ट लोंगो ने अपने पाँव तेजी के साथ फैलाए |
यंहा हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि जब - उत्तरी भारत के राज्य बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में कोरी स्लेट जैसे बन गए थे , तब उत्तरी पूर्वी राज्यों में बौद्ध धर्म अपनी जड़ो के साथ रिश्ता बताये था , मेघालय कि राजधानी शिलांग में हमें १९१८ में बिहार के निर्माण कि जानकारी मिली है यह बिहार कृपा सरन महास्थविर ने बनवाया था जो बुद्धिस्ट एसोसिएशन के संसथापक थे , इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उस दौरान उन्होंने उत्तरी पूर्व छेत्रो में बौद्ध धर्म के प्रसार प्रचार में प्रभाव पूर्ण भूमिका निभाई थी |
बंगला देश कि सीमा के राज्य त्रिपुरा में आज रहने वाले बुद्धिस्ट को कई सौ बरस पहले दखिन पूर्वी एशिया के देशो में किन्ही कारण वश आना पड़ा था, इस समय त्रिपुरा में बौद्ध गांवो कि एक सशक्त श्रंखला मिलेगी , मिजोरम जिसका निर्माण १९७२ में हुआ विशेष तौर पर यंहा चमका बुद्धिस्ट मिलंगे , असम में जो इन सात राज्यों में सबसे बड़ा है परंपरागत बुद्ध अनुयाई यंहा संख्या में सबसे अधिक है , पर जैसा हम पहले भी लिख चुके है - उत्तरी भारत के बौद्ध अनुयायियों से अलग है इनकी वेश भूषा ही नहीं, परम्पराए भी अलग है, यंहा तक कि पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी और स्वयं राजधानी कोलकाता में भी परंपरा वादी बौद्ध अनुयाई कि संख्या बहुत अधिक है |
उत्तरी पूर्व एरिया में भगवान बुद्ध को आराध्य देव के रूप में माना जाता है, वंहा कोई भी काम शुरू किया जाये उस समय - भगवान बुद्ध को अवश्य ही याद किया जायगा , बुद्ध पूजा वंहा जरूरी बन गई है,
देश के बुद्धिस्ट में विभिन्नता होना अलग बात है , पर परम्पराओ के नाम पर रूडीयो का विस्तार होना किस बात का घोतक है ?
मुख्य रूप से ऐसे दलित समाज के लिए जो बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर का सपना साकार करने के प्रयास में लगा हो , वही भगवान बुद्ध का समता मूलक दर्शन , क्या इस बात का प्रतीक नहीं की आंबेडकर वाद के प्रचार प्रसार में बुद्ध अड़चन नहीं , बल्कि उर्जावान ही है | जैसे बुद्ध के मार्ग पर चलने वालो के लिए आंबेडकर वाद ने प्रेरणा दी है , फिर इनके बीच विभाजन रेखाओ के अस्तित्व का क्या औचित्य है ?


Bharat Ratna Boddhisatva Dr. B.R.Ambedkar
Baba Saheb Dr. Bhim Rao Ambedkar
Sanvidhan Nirmata Baba Saheb Dr. Bhim Rao Ambedkar
Dr.Ambedkar News